रिटारयमेंट के बाद कर्मचारी के प्रमोशन के लिए होगी DPC, फिर रिटायरमेंट ड्यूज और पेंशन का होगा निर्धारण…

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बिलासपुर। समाज कल्याण विभाग की रिटायर अधीक्षिका मंगला शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने समाज कल्याण विभाग के आला अफसरों पर ना केवल नाराजगी जताई है साथ ही अपनेन फैसले में कड़ी टिप्पणी भी की है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता को प्रमोशन नहीं देना था इसलिए विभागीय अधिकारियों ने जानबुझकर अड़ंगा लगाया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप दुबे ने कोर्ट को बताया कि विभाग के आला अफसरों ने कई तरह के अड़ंगे लगाए। उनसे जूनियर आधा दर्जन अफसरों काे पदोन्नति दे दी। कभी ग्रेडेशन लिस्ट में विवाद तो कभी पुरानी रिकवरी को कारण बताकर याचिकाकर्ता को जानबुझकर पदोन्नति से वंचित किया गया।

याचिकाकर्ता मंगला शर्मा ने अपनी याचिका में बताया कि 15.02.1972 को “प्रोबेशन ऑफिसर” (क्लास III) के रूप में नियुक्त किया गया था। उसके बाद उसे 19.10.1981 को समाज कल्याण विभाग में अधीक्षक, यानी सहायक निदेशक कैडर (राजपत्रित) के पद पर पदोन्नत किया गया, जो उनकी सेवानिवृत्ति यानी 31.03.2017 तक था।

याचिका के अनुसार 2.7.1999 को आयोजित विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) में अधीक्षक के पद पर पदोन्नति के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किया गया। बाद में, 22.11.2007 को फिर से सहायक निदेशक / उप निदेशक के पद पर पदोन्नति के लिए डीपीसी आयोजित की गई थी। लेकिन उसके नाम पर उस डीपीसी में भी इस आधार पर विचार नहीं किया गया था कि उनके एसीआरएस उपलब्ध नहीं थे। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने 28.08.2017 को सचिव पंचायत व समाज कल्याण विभाग को नोटिस जारी कर याचिकाकर्ता को उप निदेशक, पंचायत और समाज कल्याण विभाग, रायपुर के पद पर सभी परिणामी लाभों के साथ पदोन्नति के मामले पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश दिया था।

हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर याचिकाकर्ता ने सचिव, समाज कल्याण विभाग के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। ​​अवमानना याचिका की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने 14.05.2018 को आदेश जारी कर 28.08.2017 के आदेश का अक्षरशः पालन करने का निर्देश दिया सचिव समाज कल्याण विभाग को दिया था। सचिव समाज कल्याण विभाग ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को 04.06.2018 को खारिज कर दिया।

सचिव समाज कल्याण विभाग के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की। मामले की सुनवाई जस्टिस एनके चंद्रवंशी के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संदीप दुबे ने कोर्ट के समक्ष पैरवी करते हुए कहा कि 22.11.2007 को आयोजित डी.पी.सी. में सहायक निदेशक/उप निदेशक के पद पर पदोन्नति देने से याचिकाकर्ता को वंचित कर दिया है। अधिवक्ता दुबे ने हाई कोर्ट के 28.08.2017 के फैसले की जानकारी देते हुए कोर्ट को बताया कि उप संचालक, पंचायत और समाज कल्याण विभाग, रायपुर के पद पर पदोन्नति के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी किया गया था। राज्य शासन ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है। कोई समीक्षा डीपीसी नहीं की गई, इसलिए, याचिकाकर्ता ने अवमानना ​​​​दायर किया था। इसके बाद, याचिकाकर्ता को परेशान करने के लिए 04.06.2018 का आदेश पारित किया गया। अधिवक्ता दुबे ने कोर्ट को बताया कि 22.11.2007 को आयोजित डीपीसी में उन्हें केवल उनकी एसीआर उपलब्ध न होने के कारण वंचित कर दिया गया था। अधिवक्ता दुबे ने कहा कि अफसरों ने झूठ बोला। 3.6.2007, 3.3.2007, 8.5.2007 और 4.6.2007 के कवरिंग मेमो के तहत याचिकाकर्ता की एसीआर संयुक्त निदेशक, पंचायत को पहले ही भेज दी गई थी। इसके बाद भी याचिकाकर्ता के नाम पर पदोन्नति के लिए विचार नहीं किया गया, केवल भाई-भतीजावाद करके उसके जूनियरों को लाभ पहुंचाने का काम अफसरों ने किया है।

अधिवक्ता दुबे ने कोर्ट को बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के परिपालन में समीक्षा डीपीसी आयोजित किए बिना अधिकारियों द्वारा विवादित आदेश पारित करना ही दर्शाता है कि याचिकाकर्ता को दुर्भावनापूर्वक और जानबूझकर उसके वैध अधिकार से वंचित किया गया है। अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत उसे प्रदान की जाए और विभागीय अधिकारियों को 22.11.2007 को आयोजित मूल डीपीसी के अनुसार समीक्षा डीपीसी आयोजित करने का निर्देश दिया जाए ताकि याचिकाकर्ता के उप निदेशक के पद पर पदोन्नति के मामले पर विचार किया जा सके और उक्त पद से परिणामी लाभ प्रदान किए जा सकें।

परिवीक्षा अधिकारी एवं जिला लेखा परीक्षक की 1.4.2004 की पदक्रम सूची के अनुसार चमेली चंद्राकर, रविन्द्रनाथ बोस, शारदा जायसवाल,बेलर मिन बेक और अमर चंद्र ठाकुर परिवीक्षा अधिकारी/जिला लेखा परीक्षक के पद पर कार्यरत थे। चूंकि याचिकाकर्ता को अधीक्षक के नियमित पद पर पदोन्नत नहीं किया गया था, इसलिए उसका मूल पद परिवीक्षा अधिकारी का था, इसलिए उसे 22.11.2007 को आयोजित डीपीसी में भी विचार के दायरे में रखा गया था, लेकिन उसकी एसीआर उपलब्ध न होने के आधार पर पदोन्नति के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किया गया।

3.6.2007, 3.3.2007, 8.5.2007 एवं 4.6.2007 के पत्राचार के माध्यम से याचिकाकर्ता की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट अधीक्षक, संप्रेक्षण गृह, (बालिका) राजनांदगांव द्वारा संयुक्त संचालक को भेजी गई थी। ये सभी पत्राचार 22.11.2007 (जिस दिन डी.पी.सी. आयोजित की गई थी) से पूर्व किए गए थे, इसके बावजूद याचिकाकर्ता को सहायक संचालक/उप संचालक के पद पर पदोन्नति के लिए उसके मामले पर विचार करने से केवल दुर्भावना से वंचित रखा गया, क्योंकि शासन द्वारा पेश दस्तावेजों में ऐसा कुछ भी उल्लेखित नहीं किया गया है कि किस वर्ष की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है, जबकि जैसा कि ऊपर बताया गया है, उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट डी.पी.सी. प्रारंभ होने से पूर्व ही भेजी जा चुकी थी। कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि याचिकाकर्ता के उप संचालक, पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग, रायपुर के पद पर पदोन्नति के मामले पर विचार करें और निर्णय लें।

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता को 22.11.2007 को आयोजित डीपीसी में सहायक निदेशक/उप निदेशक, पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के पद पर पदोन्नति पर विचार करने से अवैध रूप से वंचित किया गया है। इसलिए, इस न्यायालय की सुविचारित राय में, यह याचिका स्वीकार किए जाने योग्य है। लिहाजा इस याचिका को स्वीकार किया जाता है और सचिव समाज कल्याण विभाग द्वारा 04.06.2018 को जारी विवादित आदेश को रद्द किया जाता है।

कोर्ट से सचिव समाज कल्याण विभाग को नोटिस जारी कर निर्देशित किया है कि वे 22.11.2007 को हुए डीपीसी की तर्ज पर समीक्षा डीपीसी बुलाएं, ताकि याचिकाकर्ता के सहायक निदेशक/उप निदेशक, पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के पद पर पदोन्नति के मामले पर विचार किया जा सके। कोर्ट ने कहा है कि जिस तिथि से उसके कनिष्ठों को उक्त पद पर पदोन्नत किया गया था, तथा उसके पश्चात, याचिकाकर्ता को दिए जाने वाले वेतन और अन्य सेवानिवृत्ति देय राशि के संबंध में परिणाम का पालन किया जाएगा। कोर्ट ने 90 दिनों की अवधि के भीतर पूरी कार्रवाई करने कहा है।

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