महिला अफसर से दुष्कर्म में हाई कोर्ट का बड़ा सवाल: पीड़िता अधिकारी हैं, भला बुरा समझती है, फिर जबरन शारीरिक संबंध कैसे?

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बिलासपुर। विवाह के झूठे वादे, लगातार शारीरिक संबंध के चलते गर्भवती होना और फिर गर्भपात करा देना। कुछ इस तरह का आरोप लगाती हुई एक महिला अधिकारी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने दुष्कर्म के मामले में आरोपी के खिलाफ जुर्म दर्ज किया और ट्रायल कोर्ट में चालान पेश कर दिया। मामले की सुनवाई के बाद ट्रायल कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप में आरोपी को 10 साल की सजा सुना दी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। फैसले से दुष्कर्म के आरोपी याचिकाकर्ता को राहत मिली है।

ट्रायल कोर्ट के फैसले पर चुनौती देने वाली याचिका पर जस्टिस संजय के अग्रवाल के सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि पीड़िता बालिग होने के साथ ही विवाहित है। पढ़ी लिखी है और अधिकारी के पद पर कार्यरत है। वह अपना भला बुरा अच्छी तरह समझती है। इतना सब-कुछ होने के बाद कैसे मान ले कि आरोपी ने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाया होगा और विवाह का झांसा दिया होगा।

मामला जांजगीर-चांपा जिले का है। याचिकाकर्ता व दुष्कर्म के आरोपी अरविंद श्रीवास पर वर्ष 2017 में पीड़िता के साथ विवाह का झांसा देकर दुष्कर्म का आरोप पीड़िता ने लगाई थी। पीड़िता गर्भवती हुई और बाद में 27 दिसंबर 2017 को गर्भपात करा लिया। 1 फरवरी 2018 को पीड़िता ने एफआइआर दर्ज कराया और आरोपी पर दुष्कर्म का आरोप लगाया। ट्रायल कोर्ट ने आइपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत आरोपी को दोषी पाते हुए 10 वर्ष के कठोर कारावास और 50 हजार रुपये का जुर्माना किया था।

पीड़िता की उम्र घटना के समय 29 वर्ष थी। वह शिक्षित और कृषि विभाग में कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत थी। वह विवाहित है और तलाक भी नहीं हुआ था। वैधानिक रूप से विवाह योग्य नहीं थी। दोनों के बीच आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बने। गर्भपात की अनुमति भी पीड़िता ने स्वयं लिखित रूप से दी, जिसमें आरोपी को अपना पति बताया था। घटना के तकरीबन एक महीने बाद एफआइआर दर्ज की गई। एफआईआर की कोई ठोस वजह भी नहीं बताई गई। पीड़िता ने कोर्ट में कहा कि यदि उसका विवाह आरोपित से हो जाता, तो वह पुलिस में रिपोर्ट नहीं करती। इसके साथ ही पीड़िता के पिता ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने सगाई में खर्च की रकम नहीं लौटाए जाने के कारण रिपोर्ट की थी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई ऐसा ठोस प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि पीड़िता ने संबंध केवल विवाह के झूठे वादे के कारण बनाए। आरोपित को संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया है।

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