CAG का खुलासा- राफेल डील में दसॉल्ट एविएशन ने नहीं किया ऑफसेट का वादा पूरा

नई दिल्ली। राफेल विमान सौदा एक फिर चर्चा में है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा कि दसॉल्ट एविएशन ने विमानों की सौदे के वक्त 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान के बदले डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था। डीआरडीओ को यह तकनीक अपने हल्के लड़ाकू विमान के इंजन कावेरी के विकास के लिए चाहिए थी। लेकिन दसॉल्ट एविएशन ने आज तक अपना वादा पूरा नहीं किया।
संसद में बुधवार को पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़े पैमाने पर विदेशों से हथियारों की खरीद करता है। रक्षा खरीद नीति के तहत 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान लागू किए गए हैं। लेकिन हथियार बेचने वाली कंपनियां कांट्रेक्ट पाने के लिए तो ऑफसेट का वादा करती हैं लेकिन बाद में उसे पूरा नहीं करती हैं। इसके चलते ऑफसेट नीति बेमानी हो रही है। इसी सिलिसले में राफेल विमानों की खरीद का भी जिक्र किया गया है, जिसमें 2016 में राफेल के ऑफसेट प्रस्ताव का हवाला दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-2018 के बीच रक्षा सौदों में कुल 46 ऑफसेट काट्रेक्ट किए गए जिनका कुल मूल्य 66427 करोड़ रुपये था। लेकिन दिसंबर 2018 तक इनमें से 19223 करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट ही पूरे हुए। हालांकि रक्षा मंत्रालय ने इसमें भी 11396 करोड़ के क्लेम ही उपयुक्त पाए। बाकी को खारिज कर दिए गए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 55 हार करोड़ रुपये के ऑफसेट कांट्रेक्ट अभी नहीं हुए हैं। तय नियमों के तहत इन्हें 2024 तक पूरा किया जाना है। ऑफसेट प्रावधानों को कई तरीके से पूरा किया जा सकता है। जैसे देश में रक्षा क्षेत्र में निवेश के जरिये, निशुल्क तकनीक देकर तथा भारतीय कंपनियों से उत्पाद बनाकर। लेकिन सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया है कि यह नीति अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पा रही है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि खरीद नीति में सालाना आधार पर ऑफसेट कांट्रेक्ट को पूरा करने का प्रावधान नहीं किया गया है। पुराने मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि आखिर के दो सालों में ही ज्यादातर कांट्रेक्ट पूरे किए जाते हैं।