हिंसा मामला : पुलिस ने चार्जशीट की कॉपी सौंपने वाले ट्रायल के आदेश को रद्द करने की मांग की

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट से ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में इस साल की शुरूआत में हुई हिंसा के सभी आरोपियों को अन्य अतिरिक्त दस्तावेजों के साथ आरोप पत्र (चार्जशीट) की एक फिजिकल कॉपी उपलब्ध कराने को कहा गया है। इस साल की शुरूआत में पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी और इससे जुड़े आरोपियों पर हिंसा के संबंध में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करते हुए न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ से आग्रह किया कि वह निचली अदालत की ओर से 21 सितंबर और 21 अक्टूबर को पारित आदेश को खारिज कर दें।
अदालत ने अब मामले को छह नवंबर को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया है। अपनी दलील में दिल्ली पुलिस ने यह दावा किया है कि पुलिस की रिपोर्ट लगभग 2,700 पृष्ठों की है और कुल दस्तावेजों और गवाहों के बयान लगभग 18,000 पृष्ठों में दर्ज हैं।याचिका में कहा गया है, “पुलिस रिपोर्ट सहित 23 खंड (वॉल्यूम) हैं, जो ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर किए गए थे। याचिका आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत दायर की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता वैधता और आदेशों की वैधता को चुनौती दे रहा है।”

प्रसाद ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया, “ट्रायल कोर्ट ने राज्य को आरोपी व्यक्तियों को अन्य दस्तावेजों के साथ चार्जशीट की एक भौतिक प्रति प्रदान करने का निर्देश दिया है। ऐसा करते हुए ट्रायल कोर्ट ने इस संबंध में कानूनी प्रावधान के तहत पूरी तरह से जांच एजेंसी की ओर ध्यान नहीं देते हुए ‘ओनस टू सप्लाई’ डाल दिया है।” प्रसाद ने अदालत में दी गई दलील में आदेश को दोषपूर्ण करार देते हुए इस पर जोर दिया कि पुलिस को आरोपियों को दस्तावेज एवं चार्जशीट की कॉपी सौंपने के लिए एक प्रकार से एक तरफा फैसला सुनाया है।

दिल्ली पुलिस ने दायर याचिका में कहा है कि ट्रायल कोर्ट की ओर से दिया गया आदेश दोषपूर्ण है और इसमें कोई भी मेरिट नहीं है।दिल्ली पुलिस ने अपनी याचिका में कहा, “ट्रायल कोर्ट ने 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 207 की व्याख्या करने में चूक की है।”दलील में यह भी कहा गया है कि इस प्रकार भौतिक प्रतिपूर्ति करने के लिए जांच एजेंसी को निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं है।
याचिका में दलील दी गई है, “जांच एजेंसी को चार्जशीट की प्रतियां तैयार करने के लिए कोई कॉर्पस या फंड नहीं सौंपा गया है और जांच एजेंसी के पास सीमित संसाधन हैं।”वर्तमान मामले में जहां विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद दिल्ली पुलिस के लिए उपस्थित हुए, वहीं आम आदमी पार्टी (आप) के निलंबित पार्षद और मामले में मुख्य आरोपी ताहिर हुसैन का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. मनन और वकील उदित बाली कर रहे हैं।

16 सितंबर को दिल्ली पुलिस ने हिंसा के मामले में यूएपीए, भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम और सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम की क्षति की रोकथाम के तहत 15 आरोपियों के खिलाफ एक चार्जशीट दायर की थी।चार्जशीट के अनुसार, नागरिकता कानून समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों में 53 लोग मारे गए और 748 अन्य घायल हो गए।

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