देश में पहली बार पांच साल के बच्चे का हुआ अंगदान, ब्रेन डेड होने पर परिजनों ने तीन बच्चों की बचाई जान

नई दिल्ली। देश में पहली बार पांच साल के बच्चे का अंगदान हुआ। ब्रेन डेड होने पर उसके परिजनों ने साहस दिखाया और तीन बच्चों की जिंदगी भी बचाई। बच्चे का लिवर चंडीगढ़ से दिल्ली आया और यहां वसंत कुंज स्थित आईएलबीएस अस्पताल में भर्ती एक 10 साल की बच्ची को मिला। डॉक्टरों ने बच्ची का लिवर प्रत्यारोपित किया। वहीं बच्चे का दिल मुंबई पहुंचा और चंडीगढ़ के ही एक अस्पताल में भर्ती बच्चे को किडनी दी गई।

डॉक्टरों का कहना है कि अंगदान को लेकर यह परिवार पूरे देश के लिए एक मिशाल बना है। देश में लाखों लोग अंगदान के इंतजार में हैं लेकिन ज्यादातर परिवार ऐसे वक्त में सही फैसला नहीं ले पाते हैं जिसके चलते देश में अंग प्रत्यारोपण की वेटिंग सालों लंबी है।

जानकारी के अनुसार आईएलबीएस अस्पताल में भर्ती 10 साल की बच्ची को लिवर से जुड़ी गंभीर बीमारी थी। डॉक्टरों ने प्रत्यारोपण का विकल्प ही अंतिम लिया जिसके चलते परिजन भी अंगदान की राह देखने लगे। इसी बीच डॉक्टरों को चंडीगढ़ में एक पांच साल के बच्चे के बारे में पता चला, जिसके बाद डॉक्टरों की टीम दिल्ली से रवाना हुई और कुछ घंटों बाद लिवर लेकर वापस अस्पताल पहुंचे, जहां बच्ची को लिवर प्रत्यारोपित किया गया। फिलहाल बच्ची जोखिम से बाहर है।

अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक बच्ची का वजन 20 किलोग्राम था और वह छह वर्ष की आयु से बीमार चल रही थी। डॉ. एप वी पमेचा ने बताया कि इससे पहले उन्होंने इतनी कम आयु का अंगदान नहीं देखा है। उन्होंने उस पांच वर्षीय बच्चे के परिवार का आभार व्यक्त करते हुए सराहना की जिसका ब्रेन डेड होने के बाद परिजनों ने अंगदान का फैसला लिया।

ऐसे परिवारों की जरूरत पर दिया जोर
डॉक्टर ने कहा, ‘निश्चित ही किसी परिवार के लिए यह फैसला आसान नहीं होता लेकिन उस बच्चे के परिवार ने जो किया है वह ऐतिहासिक और सराहनीय कदम है। हमें ऐसे परिवारों की सख्त जरूरत है।’ उन्होंने बताया कि साल 2020 में उनके यहां 88 लिवर प्रत्यारोपण हुए जिनमें से केवल पांच ही अंगदान में प्राप्त हुए थे। इनमें से भी दो से तीन लिवर बाहरी राज्यों से दिल्ली आए थे। इससे पता चलता है कि दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में अंगदान को लेकर कितनी कम जागरुकता है।

उन्होंने बताया कि 10 वर्षीय बच्ची का परिवार आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग से है। इसलिए उसका इलाज ईडब्ल्यूएस के तहत निशुल्क चल रहा है। लिवर फेल होने से उसके मस्तिष्क और फेफड़ों पर भी असर पड़ना शुरू हो गया था, जिसके चलते प्रत्यारोपण जल्द से जल्द करने का ही विकल्प बचा था। डॉक्टरों ने बताया कि फिलहाल बच्ची खतरे से बाहर है। अस्पताल में वह चिकित्सीय निगरानी में है।

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