बारिश को कैसे मापा जाता है? और बारिश मिमी में क्यों पढ़ी जाती है
न्यूज रूम: वर्षा एक प्राकृतिक घटना है जो देखने में बेहद आकर्षक है। आप सभी अक्सर न्यूज़ चैनल या न्यूज़ पेपर में पड़ते होंगे की आज इतने MM या सेंटीमीटर बारिश हुई, और ये बातें हमे मानसून के मौसम में काफी सुनने को मिलती है और ये बातें सुनकर हमारे मन में एक ही सवाल उठता है कि आखिर बारिश को मापा कैसे जाता है और ये आंकड़े विभाग को किस आधार पर मिलते है। आमतौर पर बारिश को mm में मापते हैं| यह बारिश को मापने का इंटरनेशनल स्टैंडर्ड है| लेकिन इसकी एक बड़ी वजह भी है| दुनियाभर में बारिश को इसी तरीके मापा जाता है क्योंकि इस इकाई से बारिश के वॉल्यूम को कंवर्ट कर कर पाना आसान होता है| अगर कहें कि 1mm बारिश हुई है तो इसका मतलब है कि 1 वर्ग मीटर में 1 लीटर पानी गिरा है| इससे यह समझना आसान होता है कि कितनी बारिश हुई| वर्षामापी बारिश को एमएम या इंच में बताती है| इसलिए भी यह पैमाना अंतरराष्ट्रीय बना|
आपको बता दे की बारिश को मापने के लिए एक खास तरह के यंत्र या उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जिसे वर्षा मापी यंत्र कहा जाता है। इस यंत्र को ऐसी जगह लगाया जाता है जहाँ आसपास पेड़ पौधे या दीवार न हो मतलब इन्हें खुले स्थान पर लगाया जाता है जिससे की बारिश का पानी सीधे इस यंत्र में जाये।
ये यन्त्र एक सिलेंडर जैसा होता है और इसका जो ऊपरी हिस्सा होता है उनमें एक कीप लगी होती है या फिर इस यंत्र का जो ऊपरी हिस्सा होता है वो कीप के जैसा होता है। इस कीप में बारिश का पानी जाता है और इस यंत्र के नीचे लगे बोतल जैसे पात्र में इकठ्ठा हो जाता है। जिसे बाद में मापक के जरिये माप किया जाता है, आपको बता दे की इस काम ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट का समय लगता है। आपकी जानकारी के लिए बता दे की पहला वर्षा मापी यंत्र ब्रिटेन के क्रिस्टोफर व्रेन ने साल 1662 में बनाया था।
आमतौर पर बारिश का माप दिन में एक बार लिया जाता है, लेकिन मानसून के समय बारिश का माप दिन में दो बार लिया जाता है, पहला सुबह 8 बजे और फिर शाम को 5 बजे।