सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव-बालकृष्ण का दूसरा माफीनामा भी खारिज किया, जानिए क्या है मामला?

न्यूज़रूम| पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन Patanjali Misleading Ads और इससे संबंधित मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी और इसके संस्थापक बाबा रामदेव का दूसरा माफीनामा भी खारिज कर दिया है। पंतजलि और इसके प्रबंधक निदेशक (MD) आचार्य बालकृष्ण ने एक माफीनामा और बाबा रामदेव ने अलग माफीनामा दायर किया था। इसमें उन्होंने बिना शर्त कोर्ट से माफी मांगी थी। हालांकि, कोर्ट ने इन माफीनामा को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कार्रवाई के लिए तैयार रहने को कहा।

27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक और झूठ दावों को लेकर पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों पर पूर्ण रोक लगा दी थी और आदेश के बावजूद भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए अवमानना का नोटिस जारी किया था। हालांकि, उसने नोटिस का जवाब नहीं दिया, जिसके बाद 19 मार्च को आचार्य बालकृष्ण और रामदेव को कोर्ट बुलाया गया। उन्होंने कोर्ट से माफी मांगी, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए दोबारा अच्छे से माफीनामा दाखिल करने को कहा।

आज सुनवाई होने पर न्यायाधीश हिमा कोहली और न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने रामदेव और बालकृष्ण के दूसरे माफीनामे को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उन्हें माफीनामा देना भी उचित नहीं समझा गया, इसे पहले मीडिया को भेजा गया और हमें यह कल शाम 7:30 बजे ही मिला। कोर्ट ने कहा, “पकड़े जाने के बाद वे केवल दिखाने के लिए माफी मांग रहे हैं। हम इसे अस्वीकार करते हैं। यह जानबूझकर अवज्ञा है।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम अंधे नहीं हैं। हम इस मामले में उदार नहीं होना चाहते… हमें आपकी माफी को वही तिरस्कार क्यों नहीं दिखाना चाहिए, जो आपने कोर्ट में किए गए वादे के प्रति दिखाया? समाज को एक संदेश जाना चाहिए… जब उन्होंने (विज्ञापन) वापस लेने को कहा तो राज्य प्रशासन को भेजे गए अपने जवाबों को देखें। आपने कहा कि हाई कोर्ट ने कार्रवाई पर रोक लगाई है। 2 अधिनियम हैं। कोर्ट ने एक पर रोक लगाई थी।”
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उत्तराखंड सरकार और उसके लाइसेंसिंग और ड्रग अधिकारियों को भी जमकर लताड़ा और उनकी भूमिका पर सवाल खड़े किए। कोर्ट ने कहा, “जब उन्होंने (पतंजलि) ने आपको दिए बयान का उल्लंघन किया तो आपने क्या किया? बैठकर अंगूठे हिलाए? हम आपको छोड़ेंगे नहीं। सभी शिकायतें आपके पास आई थीं। केंद्रीय मंत्रालय ने 2020 में पत्र लिखकर आपसे कार्रवाई करने को कहा था। ऐसा 6 बार हुआ। लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहा। अधिकारियों को निलंबित किया जाएगा।”

कोर्ट ने कहा, “अधिकारियों ने फाइलें आगे बढ़ाने के अलावा कुछ नहीं किया… अधिकारियों की नेक नीयत के जिक्र पर हमें सख्त आपत्ति है। नेक नीयत पर हम आपको चीर कर रख देंगे… हम क्यों न मानें कि अधिकारियों की कथित अवमानना करने वालों के साथ मिलीभगत थी। आपने जानबूझकर अपनी आंखें बंद रखीं। उन्होंने कहा कि उनके विज्ञापन सांकेतिक हैं और आपने स्वीकार कर लिया… सुप्रीम कोर्ट मजाक बनकर रह गया है। सरकार की अधिकारी के साथ मिलीभगत थी।”

अभिसाक्षी अधिकारी और राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी (SLP) के संयुक्त निदेशक डॉ मिथिलेश कुमार से कोर्ट ने कहा, “आपमें यह सब करने की हिम्मत है? हम क्यों न मानें की आपकी भी मिलीभगत थी। अगर लोग मर भी जाएं तो चेतावनी से काम चल जाएगा? किसने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने औषधि और जादुई उपचार अधिनियम पर रोक लगा दी है? आपने 3 बार कहा कि लाइसेंस रद्द होगा, लेकिन 2 साल कुछ नहीं किया। आपको दुष्प्रेरक बनाया जाएगा।”

सुप्रीम कोर्ट ने लोगों का मुद्दा उठाते हुए कहा, “उन सभी अज्ञात लोगों का क्या, जिन्होंने लाइलाज बीमारियों का इलाज करने का दावा करने वाली पतंजलि की इन दवाओं सेवन किया? क्या आप किसी आम व्यक्ति के साथ ऐसा कर सकते हैं? ये बड़ी गलतियां हैं और इनका शिकार कंपनी का मुनाफा नहीं, बल्कि आम नागरिकों का स्वास्थ्य होता है। हम SLP के व्यवहार से स्तब्ध हैं। वे 4-5 साल गहरी नींद में रहे।”

कोर्ट ने SLP के संयुक्त निदेशक और उनके पूर्ववर्ती को नोटिस जारी कर यह बताने को कहा कि उन्होंने क्या कार्रवाई की। 2018 से अभी तक हरिद्वार के जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारियों को भी जवाब दाखिल करना होगा। अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।