वक्फ बोर्ड में बीजेपी नेता की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक: जानिये…..क्यों
बिलासपुर। वक्फ बोर्ड में सदस्य की नियुक्ति का विवाद हाई कोर्ट पहुंच गया है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस पीपी साहू ने राज्य शासन द्वारा सदस्य के पद पर डा. सलीम राज की नियुक्ति पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि राज्य शासन ने मुतवल्लियों का चुनाव नहीं कराया है इसलिए नियुक्ति पर रोक लगाई जाती है।
बिलासपुर निवासी मुतवल्ली मोहम्मद इस्राइल ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर वक्फ बोर्ड के सदस्य के पद पर डा. सलीम राज की नियुक्ति पर आपत्ति दर्ज कराते हुए रोक की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड में मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व जरुरी है। डा. राज की नियुक्ति के बाद सदस्य के लिए कोई पद रिक्त नहीं है। मुतवल्लियों के प्रतिनिधित्व के बिना बोर्ड की मान्यता नहीं रह जाएगी।
याचिकाकर्ता ने वक्फ बोर्ड की धारा 14 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें दिए गए प्रविधान और शर्तों के अनुसार बोर्ड में मुतवल्लियां की ओर से एक सदस्य होना अनिवार्य है। मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व आवश्यक है। मौजूदा बोर्ड में मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व नहीं है। प्रमुख पक्षकार डा. सलीम रजा की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने वक्फ बोर्ड एक्ट की धारा 14 में दिए गए प्रविधान का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक,सांसद व स्टेट बार कौंसिल के सदस्यों को नामित करना अनिवार्य है।
इसके अलावा ऐसे मुतवल्ली जिनका एक लाख से अधिक का आय हो। सदस्य के रूप में नामित करने का नियम है। प्रमुख पक्षकार डा राज के अधिवक्ता का कहना था कि छत्तीसगढ़ में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद जो सदस्य चुनाव जीतकर सदन पहुंचे हैं उनमें एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है। विधायक व सांसद एक भी मुस्लिम नहीं है। इसके अलावा स्टेट बार कौंसिल भंग है। बार कौंसिल का चुनाव नहीं हो पाया है। डा राज के अधिवक्ता ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में सासंद,विधायक व बार कौंसिल में मुस्लिम सदस्य निर्वाचित ना होने की स्थिति में राज्य सरकार सदस्य के रूप में बोर्ड में किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को नामित कर सकती है। इसमें प्रविधान का उल्लंघन संबंधी कोई भी बात नहीं है।
वक्फ बोर्ड में निर्वाचित सदस्यों की संख्या अधिक होनी चाहिए, इसके बाद सदस्यों को मनोनित किया जा सकता है। शर्त है कि नामित सदस्यों की संख्या निर्वाचित से अधिक नहीं होनी चाहिए। प्रमुख पक्षकार डा राज के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में ऐसे एक भी मुतवल्ली नहीं है जिसकी वार्षिक आय एक लाख से ज्यादा हो।
प्रमुख पक्षकार डा राज के अधिवक्ता का कहना कि याचिकाकर्ता मुतवल्ली ने बोर्डका चुनाव नहीं कराने की बात कही है, साथ ही यह भी कहा है कि वे चुनाव लड़ना नहीं चाहते। जब वह स्वयं के लिए कुछ नहीं मांग रहे हैं तो जनहित याचिका दायर की जानी चाहिए और इसी अनुसार इसकी सुनवाई की जानी चाहिए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में डा राज की नियुक्ति पर रोक लगा दी है।