हाईकोर्ट का फैसला कहा पुलिस के सामने दिए बयान को नहीं माना जा सकता सबूत, पढ़ें पूरी खबर
बिलासपुर| छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 2015 में हुई दोहरी हत्या और डकैती के लिए दोषियों ने अपील की थी। अपील में बताया गया कि ट्रायल कोर्ट ने पुलिस के सामने दिए गए बयान को सबूत मानते हुए आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु के बेंच में हुई। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद करते हुए कहा कि पुलिस के सामने दिए गए बयान को सबूत नहीं माना जा सकता। आरोपियों को रिहाई दी है।
बता दें, मामला ट्रेलर चालक बोधन प्रसाद और उसके सहायक नीलेश कुमार की नृशंस हत्या से जुड़ा है। हत्या के बाद शव को सूरजपुर जिले के जंगल में फेंक दिया था। जनवरी 2018 को सूरजपुर के द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने नाजिर खान उम्र 29 वर्ष, ओम प्रकाश जाट उम्र 50 वर्ष, पतुल उर्फ अब्दुल मजीद उम्र 30 वर्ष, दीपक लोहार उम्र 32 वर्ष, सुरेन्द्र लोहार उम्र 40 वर्ष और विजय कुमार जाट उम्र 27 वर्ष को दोषी ठहराया और हत्या, डकैती और सबूतों को गायब करने के लिए भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
पुलिस ने प्रारंभ में गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर मामला दर्ज किया और बाद में आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद उन पर आरोप लगाए गए। ट्रायल कोर्ट ने पुलिस के समक्ष दिए गए बयानों और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्तों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। अपीलकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 का हवाला देते हुए कहा कि इस आधार पर बयान अस्वीकार्य किया जाना था।
यह धारा पुलिस अधिकारियों के समक्ष दिए गए बयानों को अदातल ने सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगातार है। अभियोजन पक्ष ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर भरोसा किया। जिसमें चोरी किए गए ट्रेलर और अपराध से जुड़ी अन्या सामग्री की बरामदगी शामिल है। दोष सिद्धि के लिए सबूत का अभाव था इसलिए कोर्ट ने रिहाई का फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जब कोई मामला पूरी तरह से परिस्थिति जन्य साक्ष्य पर निर्भर करता है तो साक्ष्य की श्रृंखला पूरी होनी चाहिए और संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़नी चाहिए। इस मामले में अदालत ने पाया कि श्रृंखला में कई महत्वपूर्ण कड़ियां गायब थीं। कोर्ट ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि के लिए आवश्यक है कि स्थापित तथ्य केवल अभियुक्त के अपराध की परिकल्पना के अनुरूप हों तथा किसी अन्य उचित परिकल्पना को बाहर रखा जाना चाहिए।