यूनिवर्सिटी के प्रशासन में सरकार के हस्तक्षेप पर बड़ा फैसला: हाईकोर्ट ने पूर्व कुलपति की याचिका की खारिज
जनवरी 2013 से बस्तर विवि के कुलपति प्रो.एनडीआर चंद्रा को प्रशासनिक कदाचार और वित्तीय अनियमितताओं सहित कई आरोपों के बाद पद से हटा दिया गया था। राज्य सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए 2015 में एक जांच समिति गठित की। जांच रिपोर्ट से पता चला कि विवि प्रबंधन में गंभीर खामियां हैं। इस पर सितंबर 2016 में चंद्रा को हटाने के लिए अधिसूचना जारी की। इसके खिलाफ कुलपति चंद्रा ने हाई कोर्ट में अपील की। सिंगल बेंच ने उनकी अपील को खारिज कर दी।
कुलपति चंद्रा ने सिंगल बेंच के आदेश को डिवीजन बेंच में चुनौती दी। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने सुनवाई की। प्राथमिक कानूनी मुद्दा छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 52 की राज्य द्वारा व्याया और उसके प्रयोग पर केंद्रित था, जो सरकार को विश्वविद्यालय प्रशासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। चंद्रा ने तर्क दिया कि उन्हें उचित प्रक्रिया से वंचित किया गया। पर्याप्त सुनवाई या जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती देने का अवसर दिए बिना उनके विरुद्ध अधिसूचनाएं जारी की गई थीं।
संस्था के हित के लिए राज्य की कार्रवाई को उचित माना डिवीजन बेंच ने:–
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक संतुष्टि, जो धारा 52 के तहत एक आवश्यकता है, का न्यायिक मानकों द्वारा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जहां विश्वविद्यालय के प्रशासन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है, राज्य को संस्थागत हितों की रक्षा के लिए अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करने का अधिकार है। न्यायालय ने उमराव सिंह चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय की व्याया का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि धारा 52 के तहत राज्य का विवेकाधिकार तभी वैध है जब प्रशासनिक शिथिलता या गड़बड़ी के साक्ष्य हों