पति ने हाई कोर्ट में तलाक के लिए दायर की थी याचिका, जब आई फैसले की घड़ी, हो गया गजब

बिलासपुर। मनमुटाव और आपसी विवाद के चलते सात फेरे के रिश्ते में ऐसी खटास आई कि पति ने परिवार न्यायालय का रुख कर लिया। हालांकि परिवार न्यायालय ने शादी के पवित्र रिश्ते को बचाने की भरपूर कोशिश की और पति की विवाह विच्छेद के आवेदन को खारिज कर दिया। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर तलाक की अनुमति मांगी। मामला लंबा चला। इस बीच हाई कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच मनमुटाव को दूर करने मीडिएशन का सहारा लिया। दोनों के बीच लगातार बातचीत का असर भी दिखाई दिया। आपसी सहमति और जरुरत शर्तों के साथ दोनों ने एक बार फिर साथ रहने और घर बसाने का निर्णय लिया है। इस समझौते की महत्वपूर्ण मासूम बेटे ने निभाई। बेटे के भविष्य की खातिर पति-पत्नी साथ रहने राजी हो गए हैं।

रायगढ़ के एक व्यक्ति की जांजगीर-चांपा की महिला से शादी हुई थी। दोनों का एक बेटा है। विवाह के दो साल बाद दोनों के बीच विवाद गहराने लगा। मनमुटाव भी बढ़ने लगा। नाराज पति ने रायगढ़ के परिवार न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर विवाह विच्छेद की अनुमति मांगी। मामले की सुनवाई के बाद परिवार न्यायालय ने 23 सितंबर 2017 को पति के आवेदन को खारिज कर दिया। परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने वर्ष 2017 में अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस रजन दुबे व जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने प्रकरण को हाई कोर्ट मीडिएशन सेंटर भेजने का निर्णय लिया। मध्यस्थता केंद्र में आपसी समझौते की संभावना तलाशने का निर्देश देते हुए मामला मीडिएशन सेंटर को भेज दिया था।

मध्यस्थता केंद्र में मध्यस्थत विशेषज्ञ ने पहले दोनों पक्ष के अधिवक्ताओं से चर्चा की। इसके बाद याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी से अलग-अलग बात कर विवाद को समझने की कोशिश की। फिर दोनों को एक साथ बुलाकर बातचीत की। इस बीच मध्यस्थता विशेषज्ञ ने कई दौर की बातचीत की। आखिरकार दोनों अपने मतभेद भुलाकर साथ रहने पर राजी हो ही गए। अपने विवादों का निपटारा करते हुए दोनों ने लिखित समझौते पर हस्ताक्षर भी किए।

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