हाईकोर्ट ने कहा कानून में कहानी स्वीकार नहीं, जानें ऐसा क्यों कहा
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक मामला सामने आया जहां पर पीड़िता ने कोर्ट को अपने साथ हुई घटना की जानकारी दी। उसने कोर्ट को कहानी बताई जिसमें उसने बताया कि आरोपी के साथ मुलाकात ट्रेन में हुई। जॉब के नाम पर आरोपी ने जंगल में बुलाकर दुष्कर्म किया। इस मामले में पहले ही जिला सत्र न्यायालय में आरोपी को दोषमुक्त किया। वहीं हाईकोर्ट में भी किसी तरह के साक्ष्य नहीं सामने आए। पीड़ित ने जो भी बताया वह एक कहानी की ही तरह था। इस पर कोर्ट ने कहा कि कानून में कहानी स्वीकार नहीं। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
बता दें, कोरबा जिला निवासी पीड़िता कोरबा के ब्यूटी पार्लर में काम करती है। उसने बताया कि दिसंबर 2012 के 5-6 महीने पहले ट्रेन से कलकता से आते समय उसकी आरोपी से मुलाकात हुई। उसने यह कहकर पीड़ित को अपना मोबाइल नंबर दिया। उसने पीड़िता को डीबी पावर में 10000 हजार रुपये प्रति माह वेतन दिलाने की बात कही। कभी-कभी उससे बात होती थी। 3 दिसंबर 2012 को आरोपी ने पीड़िता धर्मजयगढ़ पहुंची आरोपी उसे होटल ले गया।
आगे यह भी आरोप लगाया कि आरोपी ने डीबी पावर कंपनी दिखाने के बहाने पीड़िता को मोटरसाइकिल से जंगल की ओर गए। वहां पर उसने जबरदस्ती उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और ऐसा करने पर जान से मारने की धमकी भी दी। इसके बाद आरोपी ने पीड़िता को धरमजयगढ़ बस स्टैण्ड तक छोड़ दिया। फिर कहा कि इस घटना को किसी के सामने नहीं बताना है। इसके बाद पीड़िता ने इस घटना की जानकारी अपने परिजनों को दी। उसके बाद धरमजयगढ़ थाने में सूचना दी। रिपोर्ट पर आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
पीड़िता का सहमति पत्र प्राप्त किया गया और चिकित्सीय परीक्षण के लिए भेजा गया। पीड़ित की जांच की और कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं देखी। पीड़िता के व्यक्तित्व के बारे में और उसकी एमएलसी रिपोर्ट के माध्यम से दी। आरोपी की मोटरसाइकिल और कपड़े को जब्त कर रासायनिक जाच के लिए लेब में एफएसएल जांच के लिए भेजा गया लेकिन कोई एफएसएल रिपोर्ट नहीं आयी। मामले में रायगढ़ सत्र न्यायालय में सुनवाई हुई। गवाहों के प्रतिपरीक्षण में पीड़िता ने किस बस से धर्मजयगढ़ गई। किस होटल में रूकी व बस का टिकट भी पेश नहीं किया।
सत्र न्यायालय ने गवाहों के बयान भी अलग-अलग पाया। इस आधार पर आरोपी को दोषमुक्त कर दिया गया। इसी फैसले को चुनौती हाईकोर्ट में दी गई। लेकिन वहां भी किसी तरह का कोई सबूत नहीं मिला। पीड़िता ने जो बाते बताई वह कहानी की तरह बिना सबूत के थी। ऐसे में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कानून में कहानी स्वीकार नहीं है। जिला सत्र न्यायालय के फैसले को ही बरकरार रखा।