मौत के बाद क्यों दफनाए जाते हैं हिंदू बच्चे? इसलिए नहीं जलती चिता, इस पुराण के दसवें अध्याय में है वजह
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मौत के बाद क्यों दफनाए जाते हैं हिंदू बच्चे: दुनिया में कई धर्म हैं. हर धर्म के नियम अलग होते हैं. चाहे वो जन्म से जुड़े नियम हो, शादी से जुड़े, या फिर अंतिम संस्कार से जुड़े नियम. लोग अपने धर्म के मुताबिक़ ही हर नियम को मानते हैं. बात अगर मृत्यु की करें तो हर धर्म में मौत के बाद डेड बॉडीज को डिस्पोज करने का अपना अलग तरीका होता है.
जहां हिंदू धर्म में शव का अग्नि संस्कार किया जाता है वहीं मुस्लिमों में इसे दफनाया जाता है. क्रिस्चन धर्म भी मौत के बाद अपनों को ताबूत में डालकर दफन कर देते हैं. प्राचीन समय में कुछ धर्म के लोग डेड बॉडीज को चील-कौओं के खाने के लिए छोड़ देते थे. लेकिन आज हम बात करने जा रहे हैं हिंदू धर्म में बच्चों के अंतिम संस्कार के बारे में. जहां इस धर्म में बड़ों को जलाया जाता है वहीं अगर बच्चों की मौत होती है तो उन्हें दफनाया जाता है. लेकिन आखिर ऐसा क्यों?
क्यों होता है अग्नि संस्कार?
हिंदू धर्म में कई पुराण हैं. इनमें से गरुड़ पुराण के दसवें अध्याय में मृत्य के बाद की क्रिया का वर्णन किया गया है. इसमें लिखा गया है कि मौत के बाद इंसान मोह-माया को छोड़ नहीं पाता. ऐसे में डेड बॉडीज के कान और नाक में रूई डाल दी जाती है और आंखों को बंद कर दिया जाता है. ताकि आत्मा दुबारा से बॉडी में प्रवेश ना कर पाए. इसके साथ ही कोई और तरीका आत्मा के पास ना बचे, इसके लिए बॉडी को जला दिया जाता है. इसे अग्नि संस्कार कहते हैं.
दरअसल, 27 महीने तक के बच्चे को मोह माया से कोई लेना देना नहीं होता. अगर उसकी मृत्यु गंगा के आसपास होती है तो बॉडी को पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है. लेकिन अगर गंगा दूर है तो बॉडी को दफना दिया जाता है. यही सेम लॉजिक साधू-सन्यासियों पर भी लागू होता है. चूंकि उनमें भी मोह माया नहीं होती, इस वजह से उनकी बॉडी को भी दफना दिया जाता है या कई बार पानी में ही प्रवाहित कर दिया जाता है.