हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं, यह पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है

बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में याचिका की सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में इस तरह की घटना को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं है, यह अक्सर पीड़िता के पूरे व्यक्तित्व को नष्ट कर देता है। एक हत्यारा अपने शिकार के भौतिक शरीर को नष्ट कर देता है, एक बलात्कारी असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है। इसलिए, बलात्कार के आरोप में अभियुक्त पर मुकदमा चलाते समय न्यायालय एक बड़ी जिम्मेदारी निभाता है। उन्हें ऐसे मामलों को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ निपटाना चाहिए। न्यायालयों को मामले की व्यापक संभावनाओं की जांच करनी चाहिए।

ट्रायल कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(3) के तहत अपराध के लिए दोषी करार देते हुए प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन सश्रम कारावास और 500/- रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। जुर्माने की राशि जमा ना करने पर एक माह का अतिरिक्त सश्रम कारावास भुगतने का निर्देश दिया था। ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।

रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन, रायपुर के एनजीओ में सदस्य के रूप में कार्यरत ज्योति गुप्ता ने थाना प्रभारी, पुलिस स्टेशन माना कैंप, रायपुर को लिखित शिकायत प्रस्तुत की कि पीड़िता पुलिस स्टेशन डोंगरगढ़ की निवासी है। 19.02.2019 को पीड़िता के पिता द्वारा उसके साथ शारीरिक शोषण किया गया, जिसके कारण वह अपने घर से रायपुर आ गई। जिसे रेलवे चाइल्ड लाइन, रायपुर ने लावारिस हालत में रेलवे स्टेशन से अपने साथ लेकर आया। पीड़िता की काउंसलिंग के बाद 01.03.2019 को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। जिसमें बाल कल्याण समिति से बालिका के संबंध में पुलिस स्टेशन माना कैंप में एफआईआर दर्ज करने का आदेश प्राप्त हुआ। उक्त आदेश के पश्चात जयोति गुप्ता ने पुलिस स्टेशन माना कैंप, रायपुर में लिखित शिकायत की। जिस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ‘पोक्सो’ की धारा 4 और 6 के तहत पीड़िता के पिता के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया।

ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा का आदेश कानून की दृष्टि से गलत है। अपीलकर्ता के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और अभियोजन पक्ष का मामला अनुमानों पर आधारित है, इसलिए अपील स्वीकार की जाए और अपीलकर्ता को बरी किया जाए।

एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई है और एफआईआर दर्ज करने में देरी के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जिसका मतलब है कि शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास जो रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य और मामले को देखते हुए बहुत कठोर है। इसे 20 वर्ष के कठोर कारावास में बदला जा सकता है।

पीड़िता ने अपने 164 CrPC बयान में बताया है कि वह कक्षा 7वीं तक पढ़ी है। उसकी मां का देहांत हो चुका है। वह अपने पिता के साथ रहती है। उसके पिता छोटी-छोटी बातों पर उसके साथ गाली-गलौज व मारपीट करते हैं। वह मजदूरी कर पैसा कमाती है, लेकिन उसके पिता उसे भी लेकर शराब पीते हैं। उसके पिता आसपास के लोगों से लड़ाई-झगड़ा भी करते हैं।

19 फरवरी 2019 की रात्रि में वह अपने कमरे में सोई थी, उसके पिता हॉल में सो रहे थे। रात्रि करीब 10 बजे उसके पिता उसके कमरे में आए, उसके कपड़े उतार दिए तथा उसके साथ जबरदस्ती दुष्कर्म किया तथा किसी को न बताने को कहा। इस घटना से वह डर गई थी। 21 फरवरी के दिन उसके पिता ने उसके साथ मारपीट की, जिससे वह डर गई तथा डोंगरगढ़ आ गई। डोंगरगढ़ से वह राजनांदगांव जाने वाली ट्रेन में सवार हुई, राजनांदगांव से वह दुर्ग, भिलाई, रायपुर गई जहां वह भीख मांगकर खाना खाती थी तथा रेलवे वेटिंग रूम में सोती थी। करीब 05-06 दिन पहले वह रायपुर में रेलवे वेटिंग रूम में बैठी थी, जहां रेलवे चाइल्ड लाइन के लोग आए और पूछताछ की उसने घटना के बारे में जिन लोगों को बताया था, उन्होंने उसे माना आश्रम में रहने को कहा। चाइल्ड लाइन के लोग उसे अगले दिन पुलिस स्टेशन ले गए और घटना की सूचना दी

डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर आंशिक बदलाव करते हुए प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा को 20 कठोर कारावास की सजा में तब्दील कर दिया है।

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि इस निर्णय की एक प्रति जेल के संबंधित अधीक्षक को भेजी जाए जहां अपीलकर्ता सजा काट रहा है, ताकि वह अपीलकर्ता को इसकी सूचना दे सके तथा उसे सूचित किया जा सके कि वह हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति या सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति की सहायता से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील कर डिवीजन बेंच द्वारा पारित वर्तमान निर्णय को चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है।

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