एक दिन की गैर हाज़िरी पर बर्खास्त: हाई कोर्ट आवाक… 18 साल बाद मिला न्याय, पढ़िये क्या है मामला…

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बिलासपुर। बर्खास्त कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने पुलिस के आला अफसरों से पूछा कि क्या एक दिन की गैरहाजिरी में इतनी बड़ी सजा का प्रावधान है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय के अग्रवाल ने कहा कि बिना मेडिकल या ब्लड टेस्ट के यह कैसे साबित कर दिया कि आरक्षक नशे में था। पुलिस का यह रोजमर्रा का काम है,इसके बाद भी अपने ही स्टाफ के साथ इस तरह की कठोर कार्रवाई समझ से परे है। हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी की सजा को गलत मानते हुए इसे रद्द कर दिया है और याचिकाकर्ता आरक्षक को सेवा में बहाल करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता आरक्षक को 50 फीसदी वेतन का भुगतान करने का आदेश भी कोर्ट ने जारी किया है।

डोंगरगढ़ में कार्यरत कांस्टेबल शंकर लाल 25 फरवरी 2007 को ड्यूटी से अनुपस्थित था। आरोप है कि उसी दिन वह थाने में नशे की हालत में आया और अधिकारियों से दुर्व्यवहार किया। इसके लिए आरक्षक को 18 अप्रैल 2007 को आरोप पत्र जारी कर जवाब मांगा गया। इसी बीच जांच भी बैठा दी गई। जांच अधिकारी ने 3 जून 2007 को अपनी रिपोर्ट आला अफसरों को सौंप दी। जांच रिपोर्ट में कांस्टेबल को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के तहत दोषी पाया गया। जांच रिपोर्ट की कापी आरक्षक को चार जून को दी गई। जांच रिपोर्ट के आधार पर एसपी ने 23 जून 2007 को उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। एसपी के आदेश को चुनौती देते हुए कांस्टेबल ने आईजी के समक्ष अपील की। अपील की सुनवाई के बाद आईजी ने 2 नवंबर 2015 को खारिज कर दिया। आईजी द्वारा अपील खारिज करने के बाद दया याचिका पेश की। दया याचिका पर सुनवाई करते हुए 27 फरवरी 2016 को खारिज कर दिया। आईजी के फैसले को चुनौती देते हुए अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि उस पर शराब के नशे में अधिकारियों से अभद्रता करने का आरोप लगाया है। उसकी ना तो मेडिकल कराया और ना ही ब्लड टेस्ट लिया गया है। राज्य सरकार की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बर्खास्तगी आदेश को सही ठहराया।

हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता आरक्षक की एक दिन की गैरहाजिरी का आरोप सही है, पर इसके लिए इतनी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती। नशे में होने का आरोप केवल पंचनामा और गंध परीक्षण पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बिना मेडिकल या ब्लड टेस्ट के नशे का आरोप साबित नहीं होता। हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी की सजा को रद्द करते हुए कांस्टेबल को एक वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी है। आरक्षक को सेवा में बहाल करने और बाहर रहने की अवधि के लिए 50% बकाया वेतन देने का भुगतान करने का आदेश दिया है।

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