क्यों हो रहे है लोग ‘पोस्ट कोविड सिंड्रोम’ का शिकार
क्या आप पोस्ट कोविड सिंड्रोम शब्द से परिचित हैं? पोस्ट कोविड सिंड्रोम यानी संक्रमण मुक्त होने के बाद भी वायरस के लक्षण नजर आना। दुनियाभर में कई ऐसे कोरोना मुक्त लोग हैं, जिनमें वायरस से ठीक होने के बाद भी कुछ समय तक इसके लक्षण नजर आते रहे हैं। यह ज्यादातर बुजुर्गों और जिन लोगों को कोरोना वायरस होने पर आईसीयू में भर्ती करवाया गया था उनमें देखने को मिलता है। पोस्ट कोविड सिंड्रोम में सांस लेने में दिक्कत, काम में मन न लगना, कमजोरी और थकान जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इस सिंड्रोम के होने पर आपको अपने खान-पान, दिनचर्या पर पूरा ध्यान देने की जरूरत होती हैं। इस दौरान आप अपने शरीर को पूरा आराम दें और पूरी नींद भी लें। अभी पोस्ट कोविड सिंड्रोम के बारे में बहुत कुछ रिसर्च तो नहीं हुआ है लेकिन इस पर अभी ट्रायल्स जारी है और हो सकता है कि कुछ ही महीनों में इसकी रिसर्च सामने आ जाए। मणिपाल हॉस्पिटल,इंटरनल मेडिसिन और कंसल्टेंट फिजिशियन से जानें पोस्ट कोविड सिंड्रोम से जुड़ी बातें-
कई लोग रि-इंफेक्शन को ही पोस्ट कोविड सिंड्रोम समझते हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। रि-इंफेक्शन का मतलब होता है कि व्यक्ति दोबारा से संक्रमित हो गया है जबकि पोस्ट कोविड सिंड्रोम का मतलब है कि उसमें वायरस से ठीक होने के बाद सिर्फ इसके लक्षण नजर आ रहे हैं।
कोरोना से ठीक होने के बाद लंबे समय तक शरीर में रहने वाले प्रभाव
कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद भी कई लोगों में कुछ समय तक इसके लक्षण नजर आते हैं लेकिन वे कोरोना पॉजिटिव नहीं होते हैं। इन लोगों में इससे ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक इसका प्रभाव देखने को मिलता है। कोविड से उबरने के बाद लंबी अवधि तक लोगों में मिलने वाले लक्षण:
सांस लेने में कठिनाई
सीने में दर्द, धड़कन महसूस होना, चक्कर आना, कमजोरी और थकान, भूख कम लगना, बहुत अधिक मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद, चलने-फिरने में दिक्कत, ध्यान केंद्रित न कर पाना, अपने कामों को सुचारू रूप से न कर पाना
पोस्ट कोविड सिंड्रोम में आपको कई लक्षण देखने को मिल सकते हैं। इसमें से कमजोरी, थकान, भूख न लगना और चक्कर आना बेहद सामान्य से लक्षण हैं। इसमें आपको घर पर ही आराम करने की जरूरत होती है लेकिन अगर आपको कोई गंभीर लक्षण नजर आए तो उन्हें बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें और डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
तनाव, चिंता और अवसाद, दिल की धड़कने तेज होना, नाड़ी की दर तेज होना, रक्तचाप का बढ़ना, सांस लेने में तकलीफ होना
कोविड से उबरने के बाद जल्दी से जल्दी अपने सामान्य जीवन में वापस आ जाएं। अगर कोरोना वायरस के ठीक होने के बाद आप शारीरिक रूप से एकदम स्वस्थ हैं, तो आपको अपने दिनचर्या के कामों को करना शुरू कर देना चाहिए। अगर आप ऑफिस जाते हैं, तो ऑफिस ज्वाइंन कर सकते हैं। इससे आपको डिप्रेशन नहीं होगा और आप एक बार फिर से अच्छी जिंदगी जीने लगेंगे। लेकिन अगर आपको कोरोना से ठीक होने के बाद भी इसके कुछ लक्षण नजर आ रहे हैं तो आपको अपना ध्यान देने की बहुत जरूरत है। आपको अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों का समर्थन लेना भी बेहद जरूरी है। कोरोना से ठीक होने के बाद आप अपनी लाइफस्टाइल का ध्यान रखना जरूरी है।
कोरोना वायरस से ठीक होने के बाद आपको धूम्रपान और शराब से पूरी तरह से दूरी बनानी चाहिए। इसका थोड़ा सा भी सेवन आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर कर सकता है। इसलिए इन चीजों से जितना हो सके दूर ही रहें। इसके अलावा भी सभी तरह के नशीली चीजों से दूर रहना चाहिए।
कोविड-19 ट्रीटमेंट के दौरान किए जाने वाले योगाभ्यास को आपको बाद में भी जारी रखना चाहिए। इसके साथ ही लंबी गहरी सांस लेना भी आपको अपने लाइफस्टाइल में शामिल करना चाहिए।
अगर आपके शरीर में कोरोना वायरस के कुछ प्रभाव नजर भी आते हैं, तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है। यह समय के साथ ठीक हो जाते हैं। अगर लंबे समय तक रहे तो आप डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। घबराने और डर से आपकी समस्याएं बढ़ सकती हैं। कोरोना को हराकर घर वापस लौटने के बाद आपको पूरी तरह से आराम करने की जरूरत होती है। इसलिए आपको कुछ दिनों तक तनावरहित होकर आराम करना है और पर्याप्त नींद लेनी है।
वैसे तो कोविड-19 मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। लेकिन अगर कोई गंभीर केस हो तो इससे हृदय भी प्रभावित हो सकता है। कई बार कोरोना के मरीजों में फाइब्रोसिस में भी बदलाव करना पड़ता है। यह स्थिति तब आती है, जब मरीज का इलाज आईसीयू में किया गया हो या उसे वेंटिलेटर पर रखा गया हो। यह सबसे ज्यादा फेफड़ों को ही प्रभावित करता है, इसलिए पोस्ट कोविड सिंड्रोम में मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
सभी उम्र के लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ सकते हैं और इसे हराकर ठीक भी हो सकते हैं। लेकिन कई बार कोरोना से ठीक होने के बाद भी कुछ लोगों में इसका प्रभाव देखने को मिलता है, जिसे पोस्ट कोविड सिंड्रोम कहते हैं। बुजुर्ग आबादी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। इसके अलावा जिन लोगों का इलाज आईसीयू और वेंटिलेटर में किया गया हो और उन्हें फाइब्रोसिस चेंज का सामना करना पड़ा हो तो उन्हें भी इसका खतरा रहता है। वे भी इससे सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।