उत्पन्ना एकादशी: सारे दुःख-दर्द होंगे दूर, घर में आएगी सुख-शांति

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रायपुर| मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है| इस साल यह एकादशी 8 दिसंबर यानी आज है| धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के सारे दुःख-दर्द दूर होते हैं, घर में सुख-समृद्धि आती है|

पुराणों की माने तो इस दिन यदि कुछ धार्मिक उपाय किए जाएं तो भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है| इस दिन देवी एकादशी सहित भगवान श्री केशव की पूजा की जाती है|

अगहन माह में तुलसी पूजा और खासकर एकादशी के दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है| ऐसा करने घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती, और जीवन में सुख की प्राप्ति होती है|

भगवान विष्णु को पीला रंग अति प्रिय है| इस दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए पानी में एक चुटकी हल्दी डालें और उससे स्नान करें, साथ ही इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनें| भगवान को पीले चन्दन या केसर का तिलक लगाकर स्वयं भी पीला तिलक लगाएं ऐसा करने से आपके ऊपर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है|

एकादशी के दिन पीपल वृक्ष को छूकर प्रणाम करें और जल चढ़ाएं एवं उसकी मिट्टी को माथे पर लगाएं और अपना कार्य पूर्ण होने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करें, इससे कार्य में सफलता मिलेगी, आपके मनोरथ पूर्ण होंगे|

इस दिन अन्न और धन के अलावा लोगों को ऋतुफल, धान, मक्का, गेहूं, बाजरा, गुड़, उड़द और गर्म वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए इसके साथ ही अगर इस दिन सिंघाड़ा, शकरकंदी और गन्ने का दान किया जाए तो काफी श्रेष्ठ माना जाता है और इससे घर में सुख-शांति का वास होता है, ग्रहदोष ठीक होते हैं| उत्पन्ना एकादशी के दिन साधारण शंख को श्रीकृष्ण को पाञ्चजन्य शंख के समान समझकर उसकी पूजा करने से सुख-सौभाग्य प्राप्त होता है| भगवान विष्णु या उनके किसी अवतार का शंख में गंगाजल भरकर उससे अभिषेक करें और भगवान की आरती के बाद इस जल को पूरे घर में छिड़क दें| ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी, जिससे घर में सुख-समृद्धि आएगी|

उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा :-
सत्ययुग में पहुंचकर मुरु नामक राक्षस ने देवताओं को हरा दिया और देवताओं के राजा इंद्र को बंधक बना लिया। तब सभी देवता भगवान भोलेनाथ की शरण में पहुंचे। सदाशिव भोले नाथ ने देवताओं को श्री हरि विष्णु जी से संपर्क करने की सलाह दी। इसके बाद सभी देवता श्रीहरि विष्णुजी के पास गए और उन्हें अपनी सारी समस्या बताई। यह सब सुनकर श्रीहरि विष्णुजी ने सभी राक्षसों को परास्त कर दिया, लेकिन राक्षस राजा मुरु वहां से भाग गया। राक्षस मुर को भागता देख श्रीहरि विष्णु ने उसे मुक्त कर दिया और बद्रीनाथ आश्रम की गुफा में विश्राम करने लगे। कुछ दिनों के बाद राक्षस मुरु भगवान विष्णु को मारने के उद्देश्य से वहां पहुंचा। तब श्रीहरि विष्णु के शरीर से एक स्त्री का जन्म हुआ। वहां जन्मी स्त्री ने राक्षस मुर का वध कर देवताओं को भय से मुक्त कराया। भगवान श्री हरि विष्णु के अंश से उत्पन्न श्री विष्णुजी ने प्रसन्न होकर इस कन्या को आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम उन सभी लोगों को मेरे पास लाने में सहायता करोगी जो मुझसे विमुख हो गए हैं और संसार के जाल में फंस गए हैं। श्रीहरि विष्णु ने कहा आप सक्षम रहेंगे और जो भक्त आपकी पूजा और आराधना करेंगे वे सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुखों से परिपूर्ण होकर सदैव मोक्ष प्राप्त करेंगे। श्रीहरि विष्णु से उत्पन्न होने के कारण ही इस व्रत का यह नाम पड़ा।

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