तलाक के केस में क्या है गुजारा भत्ता और इसकी रकम कैसे तय होती है? यहां समझें पूरी डिटेल
बेंगलुरु| इंजीनियर अतुल सुभाष की दुखद आत्महत्या पूरे देश में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है| साथ ही इस घटना ने एक अहम सवाल को जन्म दिया है| आखिर तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता यानी maintenance कैसे तय होता है? इस मामले में, अतुल ने अपनी पत्नी, निकिता सिंगानिया और उनके परिवार पर वित्तीय शोषण का आरोप लगाया था, जिसके कारण वह मानसिक तनाव में थे|
क्या है मामला?
अतुल और निकिता की शादी 2019 में हुई थी, लेकिन उनकी शादी में कई समस्याएँ थीं| अतुल ने एक वीडियो रिकॉर्ड किया था जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी और उनके परिवार पर पैसे के लिए उत्पीड़न का आरोप लगाया| उन्होंने बताया कि निकिता और उनके परिवार ने उनसे पैसे की मांग की थी, जो धीरे-धीरे बढ़कर करोड़ों रुपये तक पहुँच गई| जब अतुल ने इन मांगों को पूरा करने में असमर्थता जताई, तो उनके खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज कर दिए गए|
गुजारा भत्ता क्या है?
गुजारा भत्ता एक वित्तीय सहायता है जो एक पति या पत्नी को तलाक के बाद दूसरे पति या पत्नी को दी जाती है| यह आमतौर पर उस व्यक्ति को दी जाती है जो आर्थिक रूप से कमजोर होता है| गुजारा भत्ता का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दोनों पक्षों के बीच वित्तीय असमानता को कम किया जा सके| भारत में, गुजारा भत्ता की राशि का निर्धारण कई कारकों पर निर्भर करता है|
सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता की राशि तय करने के लिए निम्नलिखित आठ बिंदुओं को ध्यान में रखने का निर्देश दिया हुआ है:-
- पार्टीज की सामाजिक और वित्तीय स्थिति: दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन किया जाएगा|
- पत्नी और आश्रित बच्चों की आवश्यकताएँ: पत्नी और बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाएगा|
- शिक्षा और रोजगार: दोनों पक्षों की शिक्षा और रोजगार की स्थिति का मूल्यांकन किया जाएगा|
- शादी की अवधि: शादी की लंबाई भी अलिमनी के निर्धारण में महत्वपूर्ण होगी|
- जीवन स्तर: शादी के दौरान दोनों पक्षों का जीवन स्तर क्या था, इसे भी देखा जाएगा|
- स्वास्थ्य और उम्र: दोनों पक्षों की उम्र और स्वास्थ्य स्थिति का भी ध्यान रखा जाएगा|
- आर्थिक क्षमता: यह देखा जाएगा कि कौन अधिक आय अर्जित कर सकता है|
- तलाक का कारण: तलाक के पीछे का कारण भी अलिमनी पर प्रभाव डाल सकता है|
गुजारा भत्ता का पैसा केवल पत्नी के लिए होता है या बच्चों के लिए भी दिया जा सकता है?
गुजारा भत्ता का पैसा केवल पत्नी के लिए नहीं होता, बल्कि यह बच्चों के लिए भी दिया जा सकता है| जब पति पर उसकी पत्नी और नाबालिग बच्चे निर्भर होते हैं, तो अदालतें आमदनी को विभाजित करने का आदेश देती हैं ताकि सभी की आवश्यकताओं का ध्यान रखा जा सके|
दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय
हाल ही में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में निर्णय दिया कि यदि पति की आमदनी पर उसकी पत्नी और नाबालिग बच्चा निर्भर हैं, तो उसकी कुल आमदनी को चार हिस्सों में बांटा जाएगा| इसमें से दो हिस्से पति को और बाकी दो हिस्से पत्नी और नाबालिग बच्चे को दिए जाएंगे| उदाहरण के लिए, यदि पति की मासिक आमदनी 13,296 रुपये है, तो पत्नी और बच्चे को कुल 6,500 रुपये गुजारा भत्ता दिया जाएगा, जिसमें 4,000 रुपये पत्नी को और 2,500 रुपये बच्चे को मिलेंगे|
गुजारा भत्ता का उद्देश्य
अलिमनी का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि तलाक के बाद दोनों पक्षों के बीच वित्तीय असमानता को कम किया जाए| जब एक पति या पत्नी आर्थिक रूप से कमजोर होता है, तो उन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है| बच्चों की भलाई भी इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है| इसलिए, अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि बच्चों के लिए भी उचित भरण-पोषण दिया जाए|
बच्चों के लिए गुजारा भत्ता तब दिया जाता है जब वे नाबालिग होते हैं और उनकी देखभाल एवं शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है| अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि बच्चों की आवश्यकताएँ पूरी हों, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि| यदि बच्चे अपने माता-पिता में से किसी एक पर निर्भर हैं, तो उस माता-पिता को आर्थिक सहायता देने का निर्देश दिया जाता है|