कल है आंवला नवमी, पढ़ें आंवला नवमी व्रत की कथा……
न्यूज रूम| कार्तिक मास में कई बड़े व्रत और त्योहार आते हैं। इनमें से एक है देवउठनी एकादशी से एक दिन पहले आने वाला आवंला नवमी का व्रत। यह व्रत बहुत खास है और मां लक्ष्मी और विष्णु जी की अराधना के लिए अति उत्तम कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं, इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की खास पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करने से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है। अगर आप आंवला नवमी का व्रत कर रहे हैं तो यहां पढ़ें आंवला नवमी की कथा-
आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके वृक्ष के पूजन और इसके नीचे भोजन किया जाता है। इस व्रत का संबंध मां लक्ष्मी से है। कथा इस प्रकार है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एकसाथ करने की उनकी इच्छा हुई। ऐसे में मां लक्ष्मी ने सोचा कि किस तरह विष्णु और शिव की पूजा कैसे की जा सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी श्री हरि विष्णु को अत्यंत प्रिय है और बेल भगवान भोलेनाथ को अतः आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा संपन्न की, जिस दिन पूजा की उस दिन नवमी तिथि थी और उसी दिन से इसे आंवला नवमी कहा गया। मां लक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर श्री विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं ने भोजन किया। तभी से आंवला वृक्ष पूजन की यह परम्परा चली आ रही है। अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और इसके नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला खाना भी लाभकारी है।