सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ऐसे अपराधों को हल्के में लेने से जनता का विश्वास और भरोसा डगमगा जाएगा

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आर्थिक अपराध अन्य अपराधों से एकदमअलग है। इसका प्रभाव भी व्यापक और विस्तृत है। डिवीजन बेंच ने आरोपी और बैंक के बीच हुए समझौते के आधार पर भ्रष्टाचार का मामला खारिज करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि बैंक को तकरीबन 6.13 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। डीआरटी कार्यवाही में पक्षों द्वारा दर्ज किए गए समझौते की शर्तें व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध को मिटा नहीं सकतीं।

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि इस मामले में यह यह बात भी सामने आया है कि पक्षों द्वारा डीआरटी के समक्ष सहमति की शर्तें प्रस्तुत की गई थीं। बैंक को लगभग 6.13 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। लिहाजा सरकारी खजाने को काफी नुकसान हुआ। डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि यह भी स्पष्ट है कि इससे सार्वजनिक हित बाधित हुआ। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वर्तमान मामले में विशेष क़ानून यानी पीसी एक्ट (भ्रष्टाचार निवारण) अधिनियम लागू किया गया। हमारा मानना है कि उक्त अधिनियम के तहत अपराधों को रद्द करने से न केवल संबंधित पक्षों पर बल्कि बड़े पैमाने पर समाज पर भी गंभीर और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की डिवीजन बेंच बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के विरुद्ध दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसमें अपीलकर्ताओं द्वारा उनके विरुद्ध धोखाधड़ी, ठगी और भ्रष्टाचार का मामला रद्द करने के लिए दायर याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए अपील खारिज कर दी है।

याचिकाकर्ता मेसर्स सन इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और पक्षकार भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारी हैं। FIR और आरोप पत्र धन के विचलन, धोखाधड़ीपूर्ण मूल्यांकन और अनियमित ऋण चुकौती के आरोपों से उत्पन्न हुए हैं। याचिकाकर्ता ने कहा है कि डीआरटी कार्यवाही में उनके और बैंक के बीच दर्ज समझौता उनके विरुद्ध मामला रद्द करने के योग्य है। इसका विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने कहा कि केवल समझौता ही आपराधिक मामलों को रद्द करने का औचित्य नहीं दे सकता, जहां सामाजिक हित शामिल हैं। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा है कि वित्तीय धोखाधड़ी और सरकारी खजाने को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वाले आर्थिक अपराधों के व्यापक सामाजिक निहितार्थ हैं और उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता।