सुप्रीम कोर्ट में अर्जी: लिव इन रिश्तों का भी शादी जैसा हो रजिस्ट्रेशन, सरकार बनाए सुरक्षा के लिए कानून

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नई दिल्ली। देश में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर लंबे वक्त से बहस छिड़ी हुई है। श्रद्धा वलकर केस ने इस मुद्दे को और हवा दे दी है। अब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट एक पीआईएल फाइल की गई है जिसमें केंद्र सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप के लिए शादी जैसे रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई है। समाज में लिव- इन रिलेशनशिप की छवि को बदलने के प्रयास से इस पिटीशन को फाइल किया गया है। वकील ममता रानी की तरफ से दायर याचिका में कोर्ट से इस बात की गुजारिश की गई है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को सामाजिक समानता और सुरक्षा दी जानी चाहिए। ताकि रिलेशनशिप में रहने के दौरान लोग गर्व से रह सकें।

लिव-इन रिलेशनशिप रजिस्टर न होना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन?

याचिका में कहा गया है कि अदालतों ने हमेशा लिव-इन पार्टनर सहित देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए काम किया है। अदालतों ने लिव-इन में रह रहे लोगों के हित में कई फैसले किए हैं। याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया है कि लिव-इन पार्टनरशिप का रजिस्टर नहीं करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने अपने पीआईएस में लिव-इन पार्टनरशिप को रजिस्टर नहीं करने को संवैधानिक अधिकारों – जीवन की सुरक्षा के अधिकार के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) के उल्लंघन के तौर पर जाहिर किया है।

बनाया जाए कानून

याचिका में लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने और केंद्र सरकार की तरफ से देश में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों की सही संख्या का पता लगाने के लिए एक डेटाबेस बनाने की तत्काल जरूरतों पर भी जोर दिया गया है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह केवल लिव-इन पार्टनरशिप के रजिस्ट्रेशन को जरूरी बनाकर ही हासिल किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने अपने पिटीशन में जिक्र किया कि लिव-इन पार्टनरशिप को कवर करने वाले नियमों और दिशानिर्देशों की गैरमौजूदगी के कारण लिव-इन पार्टनर की तरफ से किए गए अपराधों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध शामिल हैं।

रीसेंट पोस्ट्स

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